Tuesday, July 12, 2016

कविता

बलुवा त्यार कपाव में
कास यूँ घन्तर पड़ा
जो दिखाई नि दिनाय
पर खुन्यो कर जाणई।

महंगाई कम हैगो कुनेयी
कधिने जीरो हैं जां त्
कधिने ख्वर् पड़ जां
आज्याल स्वर्ग बटी चै रौ।

 बलुवा रे झुंगर मडुवा तू नि खान कुनि है
दाव भात ग्युं रवाट् तिगें चैन हया
काम तू के नि करनि भये रे
स्वेण् तू टाटा अम्बानी जस देखनी भये।

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