Tuesday, July 12, 2016

सपना (स्वेण)

बेई ब्याव को मैंने के भल क स्वेण् देखा था। ओइजा कत्थब पुज गया ठहरा मैं। पैली तो बहुत देर तक पैदल चलता रहा,  चलते चलते य लोक से उ लोक पहुँच गया। उ लोक पहुँचते ही वां बड् भारि शीश महल देखा। लुकी लुकी के  मैं भतेर पहुंचा तो देखा वहां कोई नहीं। लेकिन भाई देखकर तो हैरान हो गया सोचने लगा कास यह महल मेरा होता। तभी इतने में एक आवाज गूंजी आइये आईये आपका स्वागत है आपका स्वागत। दै बज्जर में चट्ट करके लुकी गया। मुझे लगा कोई ठुल मैस आ रहा होगा उसी का स्वागत कर रहे होंगे सायद । तभी फिर आवाज आई "आप छिप क्यों रहे हैं यह महल आपका ही" मैंने अपनी मुंडी थोडा  बहार निकालकर देखा तो सुंदर सुंदर  अफ्सरायें अतिथि सत्कार के लिए फूल माला लिए खड़े थे  निचे से ऊपर को उनका सौंदर्य देख रहा था मुखडी तक पहुँचने ही वाला था कि एक आवाज आई "जोशी जी ओ जोशी जी 8 बज गए आज ऑफिस नहीं जाना है क्या?
दै मचेत झस जस हुई चदम्म् उठा हबड़ तबड में सब काम निपटाकर ऑफिस चल दिया। -भास्कर जोशी

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