Saturday, June 16, 2012

मनकी पीड़ा



कैंकें बतुं आपु पीड़ा
समझण कोई नि चान,
सब आपुण काम में मस्त हैरिन
कैंकें बतुं आपु पीड़ा।
म्यर पहड्क ठंडी हवा
ठंडो मिठो पाणी
याद उणे पहाड्की
कैंकें बतुं आपु पीड़ा।
गौं  बाखेय में जी
सब दगडी मिल-झूली
अपु हाल सुनुछी
याद उने घरकी
कैकें बतुं आपु पीड़ा ।
आज आपुण घर जानु
मित्र ना बंधू ना
वार ना पार ना
सबुले छोड़ी पहाड़
कैंकें बतुं आपु पीड़ा ।
हे देवा !
म्यर पहाड़ कस रूप हैगो
तू ही सबुकें सुनणी
तू ही य पहाड़ कें सँवार सकछे
और कैंकें बतुं आपु पीड़ा
कैंकें बतुं आपु पीड़ा ।

6 comments:

prakaash tiwary said...

gewad ghati ka ye blog achchha laga....gewad ka matlab hamere bujurg ..gehun ka bahutayat main hona batate the...wish you all the best..

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' said...

जोशी जी भलु लगणा यी आखर यिं दुखयारी जुकड़ी मा,

कैंकें बतुं आपु पीड़ा
समझण कोई नि चान,
सब आपुण काम में मस्त हैरिन
कैंकें बतुं आपु पीड़ा।
म्यर पहड्क ठंडी हवा
ठंडो मिठो पाणी
याद उणे पहाड्की
कैंकें बतुं आपु पीड़ा।

Bhaskar joshi said...

BAHUT BAHUT DHANYWAD TIWARI JI...AAP LOGON KI KRIPA SE APNE PAHAD KO YAAD KAR LETA HUN..

Bhaskar joshi said...

बिखरे हुए अक्षरों का संगठन (MANYWAR)apne pahad ko yaad kar bas tute fute sabdon ko kore kagj ke panno men likhne ka prayas karta hun...

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' said...

जोशी जी मैं राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' हूँ और ये मेरा ब्लॉग है
बिखरे हुए अक्षरों का संगठन
आप के ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ अच्छा लिखते हैं आप

Bhaskar joshi said...

धन्यवाद राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' जी आप लोगों की कृपा से टूटे हुए शब्दों को जोड़ने की कोशिस करता हूँ

गेवाड़ घाटी