Tuesday, June 26, 2012

नैना निहारते उसे


मन में इक उमंग सा,
खिल उठा तरंग सा,
पग पग डोलूं मैं,
उस की राह देखूं मैं ।
न जाने किस राह पर,
किसी अनजाने मोड़ पर,
किस अम्बर के निचे,
मिले खुशियों के लहर ।
किस डगर ढूढुं उसे
मन के नैन निहारते उसे
धुधली सी तस्वीर लिए ।
मन में इक  विस्वास लिए,
फिरता है चारों ओर उसे,
पूर्व तो कभी पश्चिम की ओर,
निकल पढता मंजिल की ओर ।

2 comments:

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' said...

सुन्दर अभिव्यक्ति
मन में इक उमंग सा,
खिल उठा तरंग सा,
पग पग डोलूं मैं,
उस की राह देखूं मैं ।

Bhaskar joshi said...

बहुत बहुत धन्यवाद "फरियादी" जी

गेवाड़ घाटी