Saturday, June 23, 2012

किस से कहूँ क्या कहूँ ?


किस से कहूँ क्या कहूँ ?
खुद को न समझा पाया,
हर एक मोड़ पर,
चौकस सा रहता हूँ ,
न जाने किस मोड़ पर,
अपना साथ छोड़ दे ,
कौन अपना कौन पराया ,
किस गली को अपना कहूँ ।
इस दोगले इन्सानियत से,
कैसे भरोषा करूँ मैं ?
सोचता हूँ क्यूँ भार बनूँ ,
एक रोशनी सी उमड़ पड़ती है ।
जिस के सेवा के लिए जन्म लिया,
उनके सपनों से खिलवाड़ कर ,
क्या में खुश रहा पाउँगा ?
जिनके आशाएं टिकी हुई हैं ।
क्या क्या सपने देखे होंगे ?
इन स्वप्न को तोड़ कर ,
क्या इन्सानियत निभा पाउँगा मैं ?
किस से कहूँ क्या कहूँ ?
खुद को न समझा पाया,

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