Wednesday, March 1, 2017

होली पर भीकू दा से चर्चा


बल भिकुदा होली आने वाली है। होली पर आप क्या विशेष करने वाले हो?

दै भागि ! वो ज़माना था जब बसंत पंचमी से घुच्च् लगाना शुरू कर देते हैं । शाम को गांव घर में बैठकी  होली का संगत होता था । "बलमा घर आये कौन दिना" "बलमा मत छेड़ो बिदक जाऊंगी" और भी बहुत से पुराने गीत होली अपने बुबु- बड़बज्यु  लोग सुनाते थे बड़े रंगत और अदाकारी के साथ। वह क्या दिन थे।

पर भिकुदा अब ऐसा क्या हो गया। होली प्रथा को आज भी गांव के लोग बढ़ा ही रहे हैं।

बेसक भुला। अब गांव में बचे चंद लोग जैसे तैसे उस प्रथा को ढो रहे हैं। गांवों का हाल ऐसा हो गया है कि बड़े बूढ़े बुजुर्ग यह कहकर होली में नहीं जा रहे हैं कि यह युवाओं का त्यौहार है हम बुजुर्गों का क्या काम। वहीँ नई पीढ़ी के बच्चे व्हाट्सअप और फेसबुक में ब्यस्त हैं। वहीँ होली वहीँ दिवाली। अब बचे कुछ चंद लोग जो गांव रस्मो रिवाज को जैसे तैसे बचाये हुए हैं वे भी कब तक अपनी परम परागत होली को  बचा कर रख सकेंगे।

हाँ भिकुदा आपकी बात सच मालूम होती है। आज अधिकांस गांव के लौंडे मोडे शहर निकल चुके हैं ऐसे में अपनी परंपरा को बचाना मुश्किल है।

हाँ भुला। हमारा जमाना था। जब तल बाखली, मल बाखली, वौर् बाखली-पौरे बाखली, न-कुड़ बाखली में लौंडों-मौडों की भरमार थी। एकादशी के दिन  होई खाव में जब चीर बाँधी जाती थी , उस दिन से बच्चों के बीच  होलिका चीर पकड़ने के लिए तना तनी शुरू हो जाती। रंग गुलाल से सभी के मुख बंदर से लाल पिले बने रहते थे। इसमें न बच्चे छुटे रहते न ही बड़े बूढे। बांस की पिचकारी बनाते थे, होली शुरू होने से पहले ही। उस पिचकारी को पकड़ने के लिए दो लोग चाहिए होते थे। क्योंकि पानी भरते ही उसका भार उठाना और पिचकारी मारना मुश्किल होता था। तब एक पिचकारी को पकडे रखता तो दूसरा पिचकारी धक्का लगाता।

बिकुल भिकुदा। अब तो सब बाजार ने कब्ज़ा कर लिया है चाहे वह रंग हो या पिचकारी।

हाँ भुला, लेकिन अब वे सब छोटे छोटे बच्चों के लिए ही रह गए हैं । क्योंकि अबकी नयी  पीढ़ी, 15 से 30 वर्ष के लोग सोशल मीडिया में मस्त हैं  30 से 45 वर्ष के लोग शराब में मस्त हैं 45 से 60 वर्ष के कुछ गिने चुने  लोग होली में आते हैं वहीँ 60 से अंत तक अपने को बूढा समझकर घर के खटिया पर लेटे लेटे अपने दिनों को याद करते हैं ।
अगर हमारी युवा पीढ़ी व्हाट्सअप फेसबुक को छोड़ परम्परागत होली को देखे और सुने तो सायद अभी और कुछ वर्षों तक अपनी बैठकी और खड़ी होली बच सकती है।

भीकू दा से सवाल जबाव जारी है होली के बीच में भिकुदा से फिर बात करेंगे। लेकिन एक बात आप सबसे जरूर कहना चाहूंगा कि इसबार की होली मनाने अपने गांव जरूर जाएँ। अपनी परम्परागत विरासत को बचाने की जिम्मेदारी हम और आपकी है।तब तक के लिए आज्ञा दें। धन्यवाद

नमस्कार , जय उत्तराखंड , जय भारत
पभजो

No comments:

गेवाड़ घाटी