Monday, March 20, 2017

"अनुपम" पर्यावरण



अनुपम भाई जी का जाना, गांधी शांति प्रतिष्ठान के साथ-साथ हम जैसे युवा साथियों के लिए भी सबसे बड़ी क्षति रही है।  उनकी चर्चित पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब, हमारा पर्यावरण, राजस्थान की रजत बूँदें व अन्य पुस्तकों की बातें हमेशा से होती रही हैं और होती रहेंगी, लेकिन अनुपम जी का पर्यावरण कितना शुद्ध रहा है यह बात सोचने और समझने की है।

हिंदी गांधी मार्ग पत्रिका में उनका पर्यावरण इसका गवाह है। उसकी साज सज्जा से लेकर उसकी भाषा तक, एकदम साफ़ व स्वच्छ। अनुपम भाई जी को एक बार मंच से पत्रकारिता के विषय में बोलते हुए सुना था। भाषा जितनी सरल व सुरुचि पूर्ण हो, पाठक उतने ही सहजता से पढ़ता है। भाषा को आज के परिवेश को देखते हुए ही, अपने क़लम द्वारा उपयोग करना चाहिए ताकि पाठक उसे समझ सके और लेखक अपनी बात सहजता से उन तक पहुंचा सके। यह तो बात थी उनकी भाषा साहित्य की। अब ज़रा अनुपम भाई के काम करने के छोटे छोटे तौर तरीक़ों पर नज़र दौड़कर देखते हैं। उनके काम करने में भी उनका पर्यावरण झलकता है।

मुझे गांधी शांति प्रतिष्ठान के परिवार में जुड़ने का अवसर 2010 के सितम्बर माह में मिला। मुझे पुस्तकालय में डाटा इंट्री का काम सौंपा गया। आए दिन अनुपम भाई जो को पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती रहती थी। उन्हें पुस्तकें देना और उनमें से ज़रूरत के पृष्ठों की फोटोकापी करवाना मुझे ही जाना पड़ता। फोटोकापी करवाने से पहले ही अनुपम भाई जी यह ज़रूर बताते की फोटोकापी कैसे करवाकर लानी है।

एक बार उन्हें गांधी विचार का एक कोटेशन 6"X8" के पृष्ठ को ए3 साईज में चाहिए था जो उन्हें किसी को भेंट में करनी थी। हमेशा की तरह फोटोकापी के लिए उन्होंने मुझे बुलाया और कहा- मुझे इस पेज की लार्ज में फ़ोटो कापी चाहिए। और यह भी ध्यान रहे कि इसके लिए आपको अपने प्रतिष्ठान से बाहर भी न जाना पड़े। मैंने कह भाई जी अपने पास तो छोटा ही फ़ोटो कापी मशीन है इसके लिए तो कनाटप्लेस जाना पड़ेगा। क्योंकि अपने पास न ही इतना बड़ा पेज है और न ही मशीन।

अनुपम भाई जी का जवाब मिला-इसे आप पहले एक रफ़ पेज पर फ़ोटोकॉपी निकल लें फिर उसे चार हिस्सों में बाँट दे। उन हिस्सों को आप ए4 साइज जितना लार्ज और साफ़ दिखाई दे उतना करके मुझे दीजिए बाक़ी मैं देखता हूँ।जैसे जैसे अनुपम भाई जी ने कहा ठीक वैसा ही कर एक पृष्ठ का चार पृष्ठों में फोटोकापी कर लाया।

जब अनुपम भाई जी को वे चार पृष्ठ सौंपे तो उन्होंने अपने पास ही बिठा लिया,और कहा - आप बैठकर देखो इसे कैसे सुंदर और उपहार देने लायक बनाया जाता है। मैं पास के कुर्सी पर बैठे बैठे भाई जी को देख रहा था। अनुपम भाई जी ने उन पृष्ठों के सभी कोने हाथ से आड़ा तिरछा फ़ाड़ा, और फाडे गये छोटे छोटे टुकड़ों को अलग संभाल कर रख दिया। बाकि के पृष्ठों को बड़ी सावधानी से गोंद लगाकर उन्हें जोड़ दिया। जोड़ने के पश्चात् ऐसा लगता है कि वे पृष्ठ आपस में जुड़े हुए हैं ऐसा न दिखने के लिए भाई जी ने रंगीन पैन की मदद से उसमें आड़ी तिरछी डिजाइन उकेर दी । अब वह कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वे चार पृष्ठों को जोड़कर एक कर दिया हो। उस बड़े से पृष्ठ को भाई जी ने एक बड़े से गत्ते पर गोंद से, बहुत ही सुविधाजनक तरीके से चिपका दिया, और उसे एक फ्रेम का रूप दे दिया। अब वह गांधी विचार का कोटेशन उपहार स्वरूप देने के लिए एकदम तैयार था।

अनुपम भाई जी के साथ काम करने में कई छोटी छोटी और महत्वपूर्ण चीजें सीखने को मिलती रही हैं।  हमेशा वे हम जैसे युवा साथियों को कुछ न कुछ सीख देते रहे हैं। अनुपम भाई जी ने हमें बहुत सीखाया है उनकी सरलता , मृदुभाषिता और साथ ही उनके काम करने के तौर तरीके, हर वर्ग के लोगों ने उनसे कुछ न कुछ सीखा ही होगा।

भले ही आज अनुपम भाई जी हमारे बीच उपस्थित नहीं है परंतु वे सदैव ही हमारे दिलों में राज करते रहेंगे। साथ ही  उनके द्वारा किये गए कार्य जो वे हम सबके लिए छोड़ गए हैं उन कार्यों को हम सभी आगे बढ़ाते रहेंगे। अनुपम जी जैसे साधारण व्यक्तित्व के संरक्षण में हमें कार्य करने का अवसर मिला यह हमारे लिए गर्व की बात है। 
भास्कर जोशी

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