Monday, March 20, 2017

संवाद


तुममें और मुझमे बड़ा फर्क है
तुम नेता हो मैं जनता हूँ
तुम कुर्सी हो मैं फाइलें हूँ
तुम्हारे जेबों में गुंडे पलते
और हम उन गुंडों से डरते हैं।
तुममें और मुझमे यही  बड़ा फर्क है

तुम हकाली बाते करते हो
हम सुन सुन कर पक जाते हैं
तुम रोजगार को "काम" से जोड़ते हो
हम दरबदर की ठोकरें खाते हैं।
तुममें और मुझमे यही बड़ा फर्क है

तुम हवा बाजी करतब दिखाते हो
हम दर्शक बन पैसे लुटाते हैं
तुम घोटालों से जन्मे हो
हम रोटी के लिए तरसते हैं
तुममे और मुझमे यही बड़ा फर्क है।

तुम किसानों का हक भी छीन लेते हो
हम अपने  हक  का भी ख़ुशी दे बैठते हैं
तुम गरीबों का भी खा लेते हो
हम पेड़ों पर लटके हुए मिलते हैं
तुममें और मुझमें यही बहुत बड़ा फर्क है।
भास्कर जोशी ।

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