Monday, July 3, 2017

दलित राष्ट्रपति : भीकू दा से सीधी बात



भीकू दा बहुत समय बीत गया । आपसे मुलाकात न हुई और न ही कोई इंटरव्यू। अभी आप मिले हैं तो क्या एक इंटरव्यू हो जाए ?

भाई आप तो टीआरपी के मौताज हैं और मुझ  पर लट्ठ बरसाने की फिराक में भी। आप तो मेरे कहे हुवे को छपा देंगे परंतु उसके बाद जो धमकियाँ आने लगती हैं वह मैं ही जानता हूँ आप तो साफ़ बच जाएंगे। फिर भी कोशिश करता हूँ आपके सवालों के जवाब दे सकूँ।

धन्यवाद भीकू दा! अच्छा कुछ दिनों बाद राष्ट्र पति का चुनाव होने जा रहा है कौन बनेगा नया राष्ट्रपति?

ले भाई ! कर दी ना देश द्रोह वाली बात। केंद्र में बैठी नई सरकार व् उसके संगठन के कार्यकर्त्ता ही देश भक्त हैं यदि उनके नीति और नियत पर प्रश्न किया तो आप देश द्रोही कहलायेंगे। अगर मैं यह कहूँ कि इसबार राष्ट्रपति का चुनाव नहीं हो रहा बल्कि दलित पति का चुनाव हो रहा है तो यही लोग मुझे देश द्रोही कह डालेंगे।

दलित पति का चुनाव कैसे ?  यह तो भारत के राष्ट्रपति का चुनाव है ना ?

जरूर यह भारत के राष्ट्रपति का चुनाव है इसमें ना ही धर्म आड़े आता है न ही जाती न ही पंथ । लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति चुनाव में पक्ष और विपक्ष दलित कार्ड का सहारा लेकर वोट बैंक की राजनीति को महत्व दे रहा है। उन्हें राष्ट्रपति से अधिक दलित पति की आवश्यकता है न की राष्ट्रपति की।

तो क्या दलितों को राष्ट्रपति बनने का अधिकार नहीं?

ऐसा नहीं है भईया? सबको बराबर अधिकार है। लेकिन दलित नाम लेकर जनभावनों से खेलना कहाँ तक उचित है। अगर राष्ट्रपति पद के लिए कोई भी सक्षम हो तो उन्हे राष्ट्रपति बनाना चाहिए । चाहे वह किसी भी धर्म जाती का हो। न ही दलित दलित दलित कर शेष धर्म जाती को बांटना चाहिए। यह एक किस्म का बंटवारा है जो कभी ब्राह्मण तो कभी मुश्लिम तो कभी दलित के सहारे चल रहे हैं । ऐसे में आम जनता असहज महसूस करती है।  साथ ही मीडिया को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वे किस प्रकार से जन भावनाओं से खेल रहे हैं। राष्ट्रपति के लिए दलित व्यक्ति सक्षम हो तो उनके कामों के जरिये  उन्हें वह अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए न कि जाति पंथ के आधार पर।
भास्कर जोशी।

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