Monday, July 3, 2017

क्किसान मर रहे

कर दिया कबाड़ा
किसान मर रहे
तुम्हारी राजनीति ने
कैसा बंटाधार किया।

धरने पर बैठे
सबकुछ गँवा कर
मांग उनकी जायज है
तुम्हारी बला से

दिन भर वे मेहनत करे
धुप देखे न  छांव
न मिले मजदूरी
 तुम्हारी बला से

किसानों की पीड़ा
कभी तुम न समझोगे
पेड़ों पर लटके मिले
तुम्हारी बला से।

तुम करो राजनीति
आग घर घर में लगा दो
किसान न जी सके न मर सके
तुम्हारी बाल से।

दल-दल बदलने की
तुम्हारी है फिदरत
किसान कहाँ जाएं
तुम्हारी बला से ।

किसानों के सीने में
तुमने दाल दल दिए,
कुछ जैसे तैसे काट रहे दिन
तुम्हारी बला से।

भास्कर जोशी

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