Monday, July 3, 2017

मेरे गांव के बात

मेरे गांव के बाट

टेढ़े मेढे बाट
इस बाखली से
उस बखाली तक
घर तक छोड़ जाती ।

घने जंगल के बीच
ऊपर नीचे आडी तिरछी
इस गधेरे से
उस गधेरे के छोर तक
आसानी से पहुँचा जाती।

अब तो आँखें बंद कर भी
उन्ही बाट बट्योरों की छवि दिखती है
सपने  में भी उन्हीं पगडंडियों पर
चलता हुवा खुद को पाता हूँ ।
 भास्कर

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