Monday, July 3, 2017

कहानी : देबुली बुआ

देबुली बुआ  कहानी

एक दम मुफट, गाली गलौच तूती करना मानो उनका अधिकार था. पीठ पीछे कुछ न कहती जो भी कहना हो मुह पर फट् दे मारती, लोगों ने भी उसे कम गालियाँ नहीं दीं.  बांज, रान, न जाने और क्या क्या गालियाँ देबुली को सुनने को मिलती रही. देबुली जितनी दबंग किस्म की महिला थी उतनी ही करुना से भरी हुई मातृत्व प्रेम भी था. स्नेह जब उमड़ता तो आखों से अश्रु बह उठते. सारा लाड प्यार उड़ेल देती.

आज जब उसकी अंतिम यात्रा की डोली सजाई जा रही थी. तब उसके रिश्ते नाते, की भीड़ लग रही थी. उसकी अंतिम यात्रा में सभी सम्मलित हो रहे थे. देबुली ने अपना जीवन मायके में ही बिताया था. उसकी शादी की डोली तो मायके से उठी ही थी. पर अंतिम यात्रा की डोली भी मायके से ही उठने को तैयार थी. मायके में उसके साथी रहे भाभी, बहुवें रो रो कर देबुली के किस्से बता रहे थे,- देबुली तू कितनी भाग्यशाली रही, तेरे बाल बच्चे न होते हुए भी आज तेरा भरा पूरा परिवार है, दानों में दान- कन्यादान तू कर गयी, यज्ञों में यज्ञ, श्रीमद्भागवत महापुराण यज्ञ कर गयी. तुझे तो वैकुण्ठ ही प्राप्त होगा. देख तेरा परिवार कितना बड़ा परिवार है तू देख तो सही...............|  

देबुली का जीवन बड़ा ही काँटों भरा रहा. यों ही कोई सोलह सत्रह की उमर रही होगी जब देबुली का ब्याह हुवा था, पति उस समय भारतीय सेना में सिपाही था. छ: महीने भी नहीं हुए थे ब्याह के, कि पति सीमा पर शहीद हो गया और इधर देबुली अभी जवां ही न हुई थी कि उसे विधवा होना पड़ा. अभी उसका बचपना भी ठीक से बीता नहीं था और न जाने विधाता ने उसके साथ इतना बड़ा अत्याचार क्यों किया. वह भगवान को हमेशा कोश्ती रही,

बड़े भाई को इस बात की सूचना मिली तो वे अपने बहन के दुःख में भागी होने चले गये, पर जब वहां पहुँचे, देबुली की स्थिति देखा, अपने आंसुओं को न रोक पाए| देबुली के सास ससुर से बात कर देबुली को अपने साथ ले जाने की बात कही. भाई की लाचारी देख सास ससुर ने भी जाने की आज्ञा दे दी. भला यहां यह करेगी भी क्या जब पति ही न रहा. अभी तो इसका पूरा जीवन पड़ा है.  बड़े भाई देबुली को अपने साथ मायके ले आये.

कुछ अर्शे तक देबुली एक दम शांत रही, न किसी से बात करती न कुछ कहती, समय बीत रहा था तो देबुली भी अब अपने दुखों से धीरे धीरे उभरने लगी, कुछ साल बीत जाने के बाद देबुली की छोटी बहन की शादी तय हुई, बहन की शादी के बाद देबुली सामान्य स्तिथि में आ चुकी थी. सबसे बात चीत करना हंसी मजाक करना, घर के सभी काम में हाथ बटाना, वह सब कुछ करने लगी थी. लेकिन बाद में देबुली की अपने भाई-भाभियों से छोटी-छोटी बातों पर झगडा होने लगा. झगडा इतना बढ़ गया कि देबुली घर छोड़कर अपने बहन के ससुराल पहुंच गयी, खर्चे के लिए उसे अब किसी से रूपये-पैसे मांगने के जरूरत न पड़ती. तब तक देबुली की सिपाही पेंशन लग चुकी थी,

बहन के घर जब पहुचीं, और बहन का हाल देखा तो वह रो पड़ी. जवांई को शराब की बुरी लत लग चुकी थी. दो छोटे छोटे बच्चे थे और एक कोख में पल रहा था. कुछ समय तक देबुली वहां रही, बहन के काम काज में हाथ बटाने लगी. पर जवांई पीए-खाए हालत में घर आता और अपनी पत्नी संग मार पिट करता. बहन की एसी स्थिति देख वह कहाँ चुप रहने वाली थी. वह भी उस झगडे का हिस्सा बनने लगी, जवांइ और बहन की बीच इतना बड़ा झगडा हुवा कि देबुली वहां से छोड़कर अपने मायके लौट आई. भाई के घर पहुँचने के कुछ दिन तक सब कुछ ठीक रहा. कुछ दिन गुजर जाने के बाद वही वाद-विवाद होने लगा. देबुली भी अब दबने के मुंड में नहीं रहती, खुलकर विरोध करती थी,

शहर से जब देबुली का छोटा भाई गाँव पहुंचा, तब बड़े भाई ने देबुली के बारे में वगत कराया. छोटा भाई करता भी तो क्या करता, परन्तु उसने देबुली से कहा जब भी तेरी इच्छा हो मेरे पास शहर चली आना. तेरा छोटा भाई हमेशा तेरे साथ है. तब देबुली बड़े भाई का घर छोड़कर गाँव में ही किसी के यहां किराये पर रहने लगी थी. चार पांच साल तक वह उस घर में किराये पर रही. कुछ दिन बीत जाने के बाद देबुली के नाम एक ख़त पहुंचा, उसमे लिखा था, तुम्हारी बहन के पति नहीं रहे. यह बात जब देबुली के कानों में पड़ी तो वह रोते हुए अपने बड़े भाई के पास पहुंची, भाई होने के नाते उन्हें दुःख तो हुवा पर देबुली के बर्ताव को देख वे कुछ कह नहीं पाए. उनके मन में कहीं कुछ और भी चल रहा था. कहीं उसे भी मायके बुलाने के नौबत न आजाये. यही कारण था की पांच भाइयों में से कोई भी वहां जाने को तैयार नहीं हुआ.

देबुली को अपने बहन की हालत पहले ही देख चुकी थी . जब वह बहन को छोड़ कर आई थी तब दो छोटे छोटे बच्चे बड़ा लड़का और छोटी लड़की ही थे और एक कोख में पल रहा था, बाद के कुछ वर्षों में बहन के चार बच्चे हो चुके थे. बड़ा लड़का था और बाद के तीन लड़कियां.  देबुली को मन ही मन बहन की चिंता सताए जा रही थी. पति जैसा भी हो एक सहारा होता है पति तो आखिर पति होता है. वह इतना तो जान ही चुकी थी, उसने उसी दिन गठरी में चार कपड़े बंधे और बहन के यहां बग़ैर भाइयों को खबर किये चली गयी. बहन का कामकाज भी कुछ कम न था. चार-चार भैंस पाल रखे थे. गाय-बैल सो अलग थे, इधर भाई भी लोक लाज के डर से तीन महीने बाद अपने बहन से मिलने जाते हैं. भाई के वहां पहुँचने पर देबुली के साथ खूब कहा सुनी होती है. तब भाई ने क्षमा मांगते हुए अपनी बहन से कहा- तेरे इस बड़े लड़के की देख-भाल मैं कर लूँगा, मैं भी घर परिवार वाला हूँ, मेरे भी चार छोटे छोटे बच्चे हैं उनके साथ इसे भी अपने बच्चे जैसा रखूँगा. इससे अधिक मैं भी कुछ नहीं कर सकता हूँ .

देबुली के कहने पर बहन ने बड़े बेटे को उनके साथ रवाना कर दिया. कई साल तक देबुली वहीँ बहन के यहां रही वहीँ काम काज संभाला, बहन के बड़े लड़के को व पांचवीं पास करने के बाद उसे वापस बुलवा लिया. और कुछ समय वह वहीँ रही, देबुली के बर्ताव में काफी फर्क आ चूका था व एकदम निर्भीक और झगडालू किस्म की हो चुकी थी. बात-बात में बहन से भी नोक झोक होने लगी.

देबुली के दो भाई शहर में रहते थे. अब वह बारी बारी से कभी वह उनके यहां चली जाती, तो कभी मायके तो कभी बहन के यहां. कई वर्षों तक यह सिलशिला यों ही चलता है, उधर बहन की लड़कियां शादी के योग्य हो गयी थी, बहन का बुलावा आना पर वह बहन के वहां चली गयी. देबुली की पेंशन तो थी ही, तो उका पैसा बैंक में जमा होता रहा, उसी पैसे से उसने बहन ही तीनों लड़कियों की और बड़े लड़के की भी शादी करवाई. समय समय पर अपने भाइयों के बच्चों की शादी के लिए भी देबुली ने पैसों की खूब मदद भी की. जिसे वह अपनी ख़ुशी से देती थी, उस से कभी वापस नहीं मांगती. परन्तु यदि किसी ने एक रुपया भी उससे उधार के रूप में लिया होता, वह एक आना भी न छोडती.

देबुली की उमर भी ढल रही थी. अब इच्छा थी कि वे अपने ससुराल जाकर सबसे मिल लूँ. वह बहन के यहं से विदा लेने के बाद अपने ससुराल में सभी से मिलने पहुंच गयी. तब तक उधर सारा माहौल बदल चूका था. सास ससुर अब रहे नही, देवरानी, जेठानी सभी शहर जा चुके थे. घर के केवाड बंद थे. उस रात वह अपने परिवार बिरादरी के यहां ही रही, वापस लौटना वहां से मुश्किल था. दुसरे दिन वह वहां से लौटते सयम अपने देवरानी और जेठानी का फोन नंबर लेते हुए, मायके लौट आई.  मायके में कुछ दिन बिताने के बाद अपने जेठानी को फोन किया. जेठानी ने भी उसे आने का न्योता दिया.

जेठानी के घर पहुँचने पर वह सभी से मिली, परिवार के बच्चों को भरा पूरा परिवार देख देबुली रोने लेगी. देबुली ने उन सबके सामने अपनी एक इच्छा जाहिर की- कि वह एक बार अपने कुटुम्भ के साथ भागवत कथा करना चाहती है जिसमें आप सभी की भागीदारी जरुरी है. आप लोग मेरे अपने हैं, आप लोगों को ही मुख्य भूमिका निभानी हैं. जेठानी के बड़े बेटे ने इसमें अपनी रूचि और सहमती दोनों व्यक्त की. उसके बाद देबुली वहां से सभी रिस्ते नाते के साथ निमत्रण देते हुए मायके पहुंच गयी. मायके में ही बड़े भाई के बच्चों के देख रेख और गाँव वालों की मदद से भागवत कथा यज्ञ करवाया गया.

देबुली की इतनी उमर हो चुकी थी कि वे अब अपने बुढ़ापे की बीमारी से भी अब जूझने लगी. अस्थमा दिनोदिन बढ़ने लगा था. इलाज के लिए भी वह सभी कुछ कर चुकी थी. पर उसे अब एहसास होने लगा था अब उसका जीवन अधिक समय तक नहीं रहने वाला था. इसलिए मायके लौट आई. उसकी देखभाल उसके बड़े भाई के बहु बेटे कर रहे थे. बहु बेटे अपनी बुवा की देखभाल अपने माँ पिताजी की तरह करते.

बीमारी की अवस्था में देबुली थोडा बोल-चाल की स्थिति में थी. उस दिन सभी रिश्ते नातों से फोन पर बात की और अंतिम भेंट करने की इच्छा व्यक्त की. दुसरे दिन से ही रिश्ते नातों की भीड़ लगनी शुरू हो गयी, और यह हप्ते भर तक चलता रहा, यह देबुली का अपने परिश्रम, त्याग. कर्म का ही फल था कि  उसके अंतिम क्षणों में सभी अपना हक़ बारी-बारी से निभाते आये. उसी बीच एकाएक देबुली का स्वास्थ अधिक बिगड़ गया. सास लेने में तकलीफ काफी होने लगी. दिन ढलने तक सबकी साँसे देबुली बुवा पर ही अटकी हुई थी. सभी देबुली बुवा के इर्दगिर्द ही थे और उस दिन देर रात सबको छोड़ अनितं यात्रा के लिए चल पड़ी.
भास्कर जोशी

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