Monday, July 3, 2017

उफ़ ! ये गर्मी

उफ़ ! ये ग़र्मी

उफ़! ये गरमी
तपती धरा, हवा संग बहती लू
हौले हौले से ही सही
मगर झील्लाती हुई पहुँची।

घमोरियों संग तनाकसी
रोम रोम से पसीने की धार
हौले हौले से ही सही
मगर बहती हुई निकल चली।

आँखों की परत मुरझाई सी
हौंठ सूखे, सूखे बिन पानी के
हौले हौले से ही सही
मगर लपलपाते हुए जीभ ठंडक दे गयी।

सर्दी का अहसास करना
कल्पनाओं से भी, अभी ओझल लगता है
हौले हौले ही सही
मगर फ़ैक्टरी से निकले बर्फ़
ठंडक का अहसास करा गयी।

ए गरमी तेरी ये मुहब्बत
अब हम सर्दियों में याद किया करेंगे।
धुंद की चादर से जब तू ढक जाएगा
हौले हौले ही सही
मगर छटने का इंतज़ार रहेगा।

भास्कर जोशी

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