Tuesday, March 22, 2016

घन्तर-6 : भिकुदा प्रेस वार्ता

घन्तर-6
भिकूदा से प्रेस वार्ता-5

भीकू दा कभी पहाड़ में तेंदुवा बाग़ी हो जाता है तो कभी नेता। आम जनता की फ़िकर तो किसी को है ही नहीं

हाँ भुला! पिसना तो जनता को ही है तेंदुवा बाग़ी हो जावे तो आदमी मरे। नेता बाग़ी हो जावे तो तब भी आदमी ही मरे। नेताओं का क्या बिगड़ता है? मार तो आम जनता को ही पड़ती है। ये लोग तो सूटकेश में भर भरकर नोटों के बंडल दबा लिए होंगे।

बल भीकू दा आप इन्हें समझाते क्यूँ नहीं ?

भुला एक कहावत है "भैंस के आगे बीन बजाना" ये लोग न ही बात से समझते हैं ना ही लात से। नोटों के बंडल फेंको तमाशा देखो, तो इनकी दुम हिल हिलाने लगती है. ये पैसे के अलावा दूसरी कोई भाषा नहीं समझते हैं

बल भिकूदा कोई तो एसा रास्ता होगा जो इन्हें रास्ते पर ले आये?

क्यों नहीं भुला! रास्ते बहुत हैं पर सही आदमी रास्ता दिखाए तब ना। वैसे जनता ही इन्हें रास्ते पर ही रख सकती है लेकिन अपने यहाँ की जनता को फ़ुर्सत कहाँ ? कोई शराब पीकर नाले में पड़ा होगा तो कोई नेताओं की चमचा गिरी करने में लगा होगा तो कोई नींद के झोंक ले रहा होगा।

तो क्या भिकूदा ये सुधरेंगे नहीं ?

ज़रूर सुधरेंगे भुला!  लेकिन तब, जब ये जनता अपने वोट का हिसाब माँगेंगी। बात फिर वहीं घूम कर आ जाती कि जनता को नींद से झकोरे कौन। बहरहाल अभी जनता होली के रंग में धूत है होश में कम ही आती है और वहीं अपने नेता विधान सभा में होली के रंग में तमाशा दिखा रही है। इंतज़ार है कि ये इस नशे से बाहर निकलकर जनता की सुध लें पर यह होता नहीं दिखाई दे रहा है । एसे में उत्तराखंड का बनटा धार निश्चित है।

बल भीकू दा देहरादून में तो खिचड़ी पक रही है इस खिचड़ी से किसे लाभ होगा ?

भुला सीधी सी बात है जनता को तो लाभ होगा नहीं। लाभ होगा तो उन नेताओं को जो हमारे वोट को धन बैंक समझकर अकाउंट खोले हैं और वे मेरी नज़र में वैश्या से भी निहायती हैं। चाहे वह किसी भी पार्टी का हो। ये वैश्या लोग सिर्फ़ पाँच साल में एक बार हमें रिझाने आते हैं और जो अपनी अदाकारी से हमें सम्मोहित कर लेता है उसका हम गुणगान कर उसे अपना बहुमूल्य वोट दे गँवाते हैं और फ़िट ये ऐस कैस में डूबे रहते हैं। पाँच साल ख़त्म होते होते इनकी नज़रें फिर उस वैश्या पर पड़ती है जिसने भर भरकर तिजोरी भर रखी हो। तब ऐसे में शेष वैश्या खिचड़ी पकाकर आगे की प्लानिंग बनाते हैं और  उसकी तिजोरी लूटने का प्लान बनाते हैं। तब ऐसे में जनता की रूख कौन करेगा। जब ये ठन ठन गोपाल हो जाते हैं फिर जनता का रुख़ करते हैं चूँकि देने के लिए नहीं बल्कि हाथ फैलाने के लिए। और जनता अपने आप को दानी कर्ण समझकर बहुमूल्य कवच दान कर बैठते हैं।

तो भिकूदा इसका निवारण कैसे होगा ?

देख भुला दौर है बिजनेश का। एक हाथ दे एक हाथ ले । 5 साल का बॉण्ड भराओ काम नहीं किया तो कोंट्रेक्ट कैनशील याने की नेता का पद छीन डालो स्तिफा माँगो। दूसरे कम्पनी को ओफ़र दो ।

भिकूदा के साथ प्रेस वार्ता जारी है बने रहिए नए सवाल जवाब के साथ।
भास्कर जोशी पागल
9014843459

इस से पहले के घन्तर सिरीज़ आप http://pagalpahadi.blogspot.in ब्लॉग लिंक में पढ़ सकते हैं

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