Wednesday, October 5, 2016

एक समीक्षा : इंद्रेण कुमाउनी पुस्तक लेखक पूरन चंद्र कांडपाल :

उत्तराखंड साहित्य के जन नायक  आदरणीय पूरन चंद्र कांडपाल जी का बहुत बहुत आभार।
आदरणीय कांडपाल जी से कई बार मुलाक़ात हो चुकी है आप सभी की कृपा से आगे भी होती रहेगी। कांडपाल जी से जब भी मुलाक़ात होती है उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है अभी कुछ दिन पहले एक पुस्तक विमोचन के अवसर पर उनसे पुनः मुलाक़ात हुई । मुलाकात के द्वरान उनसे पहाड़ की शब्द शैली पर बहुत कुछ सीखने को मिला है। हम युवा नए अटपटे भाषा की ओर बढ़े जा रहे हैं और अपने मूल भाषा को पीछे धकेल रहे हैं । चाहता तो था कि इस विवरण को पूरे कुमाउनी शैली में लिखूं पर उन अपने पहाड़ी मित्रों को भी ध्यान में रखता हूँ जो पहाड़ से शहर आकार अपनी मूल भाषा को भूल चुके हैं।

 कांडपाल जी अब तक कई हिंदी पुस्तकों के साथ साथ कुमाउनी भाषा में भी कई पुस्तकें लिख चुके हैं । जिसमें कुमाऊंनी कवितायेँ। कुमाउनी कहानियां, गीत, निबंध संग्रह व् आदि हैं । उनमे में से  कुमाउनी सामान्य ज्ञान -उज्याव्, महामनखी- यह तीन भाषाओँ में लिखी है हिंदी कुमाउनी और अंग्रेजी में । महा मनखी में उन्होंने महान विभूतियों पर संक्षिप्त प्रकाश डाला है जिन्हें भारत रत्न और पद्मभूषण सम्मन से नवाजा गया है।
आदरणीय कांडपाल जी की कृपा से उनकी 6  पुस्तके मुझे पहले मुलाकातों में प्राप्त हुई हैं। अब जब उनसे पुस्तक विमोचन के द्वरान मुलाक़ात हुई तो उनके कर कमलों द्वारा -स्कूलीनना लिजी 154 अनुच्छेद , 30 कहाणी, और 16 चिट्ठी  से भरपूर " इंद्रेणी " पुस्तक सप्रेम प्राप्त हुई।
आदरणीय कांडपाल जी ने  भले ही यह पुस्तक छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर लिखी हो परन्तु यह बड़ों मानुसों के लिए भी उतनी ही कारगर साबित होगी, ऐसा मुझे लगता है।  154 अनुच्छेद 30 लघु कथाएं व् 16 चिट्ठियों में ज्ञान व् जीवन में उतारने लायक कई महत्वपूर्ण कहानियां व् अनुच्छेद व्यक्त की हैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है क़ि जिन कुमाउनी शब्दों को हमारी नई पीढ़ी भूल गयी है वे कुमाउनी शब्द इस संग्रह में नजर आते हैं।   जिसप्रकार कुमाउनी भाषा का प्रयोग आदरणीय कांडपाल जी ने किया है वे सीखने लायक है। कांडपाल जी ने 16 चिठियां लिखी है उन्हें पढ़ने का आनन्द ही कुछ और मिला शायद ही शब्दों में बयां कर पाऊं। चाचा, ताऊ, स्कुल, मुख्यमंत्री व् अन्य को हम कैसे कुमाउनी में पत्र लिखें इसपर काफी जोर दिया है।
 लिखा हुवा जितना छोटा या सूक्ष्म हो उतना ही मारक भी होता है। और यह कांडपाल जी के इंद्रेणि कुमाउनी पुस्तक में दिखाई देती है। मैंने आज से पहले कभी भी किसी भी  पुस्तक पर अपनी टिप्पणी नहीं दीं। क्योंकि भय रहता था कि अनजाने में पुस्तक के विषय में कुछ अनुचित न लिख बैठूं जिससे लेखक मेरी वजह से लज्जित महसूस करे। थोड़ा साहस जुटाकर आज थोड़ा बहुत लिखने का प्रयत्न किया है। साथ ही कांडपाल जी की इस पुस्तक ने लिखने के लिए भी बाध्य किया है। कुमाउनी भाषा को बढ़ावा व् सीखने के साथ साथ जीवन में उतारने योग्य कई महत्वपूर्ण शिक्षा दी है एक शिक्षक की भांति। कांडपाल जी की यह पुस्तक 'इंद्रेणि" कुमाउनी साहित्य भाषा सीखने वालों के लिए शिक्षक बनकर उभरी है ।

No comments:

गेवाड़ घाटी