Wednesday, October 5, 2016

काला सच

2 अक्टूबर काला दिवश
जी हां पूरा भारत 2 अक्टूबर को जब गांधी जयंती  मना रहा होता है उसी दिन उत्तराखंड काला दिवश मना रहा होता है। यह काला दिवश हर वर्ष दिल्ली जंतर मंतर पर 1994 मुज्जफरनगर में  शहीद हुए उत्तराखंड के आंदोलनकारियों को  याद कर, दोषियों को सजा देने की मांग की जाती है।

26 साल बीत जाने के बाद भी आजतक उन आरोपियों को सजा नहीं हुई जिन्होंने बर्बरता पूर्वक उत्तराखंड से दिल्ली आ रहे आंदोलनकारियों का कत्लेआम किया। आज भी वे दोषी खुले आम घूम रहे। उन दोषियों के खिलाफ तब से लेकर आज भी 2 अक्टूबर को जंतर मंतर पर काला दिवश के तौर पर धरना प्रदर्शन किया जाता है।

गत 2010 में, मैं जब दिल्ली आया तब जंतर मंतर की जानकारी अपने को नहीं थी । 2011 से  दिल्ली में उत्तराखंड के सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा । उसके बाद ही मुझे काला दिवश व मुज्जफर नगर काण्ड के बारे में पढ़ा और सुना । पिछले पांच वर्षों से मैं भी जंतर मंतर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराता रहा हूँ। लेकिन तब उत्तराखंड के कुछ ही गिने चुने लोग पहुँचते थे। यही कोई 30 या 40 लोग, वह भी बड़ी मुश्किल से। लेकिन पिछले साल जब गया तो देखा इसबार काफी उत्तराखंड के लोग एकत्रित हैं। परंतु उन 30 या 40 लोगों में से 4-5 ही लोग नजर आये जो हर साल दिखाई देते  थे। बाकी सब नदारद थे। जानने के बाद मालूम हुआ कि यह भीड़ उत्तराखंड क्रांतिदल की है। जिन्होंने अभी अभी उत्तराखंड क्रांति दाल जॉइन किया है। एक तरफ अच्छा भी लगा दूसरी ओर दुःख भी हुआ।

अच्छा इसलिए लगा कि पहली बार जंतर मंतर पर उत्तराखंड के लोगों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली। लगा कि दिल्ली केंद्र सरकार तक इस भीड़ का असर पड़ेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुवा।

दूसरी ओर दुःख इसलिए भी हुआ कि उत्तराखंड क्रान्ति दल इस से पहले कहाँ था जिसने उत्तराखंड राज्य आंदोलन की स्थापना की। पांच सालों से लगातार देख रहा था पर कभी इस प्रकार उत्तराखंड क्रांति दल के लोग नहीं दिखे।  एकाएक ऐसा क्या हो गया कि जंतर मंतर पर इनकी भीड़ उमड़ आयी। एकाएक ऐसा कौन सा सपना देख लिया था कि मुज्जफरनगर काण्ड की इन्हें याद हो आयी?

खैर अभी 2017 में उत्तराखंड में चुनाव होने हैं। सियासी दाव पेच खेलना कोई इन राजनीतिज्ञों से सीखें। जब चुनाव नजदीक आते हैं तभी इन्हें अगला पिछला याद आता है। वरना खामखां में तू कौन और मैं कौन?
भास्कर जोशी

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