Wednesday, October 5, 2016

कविता

आप सभी के आशीर्वाद और हरदौल वाणी साप्ताहिक अखबार की कृपा से मेरी रचना को स्थान देने के लिए आदरणीय देवी प्रसाद गुप्ता जी (श्री जी), भाई ललित मोहन राठौर जी का बहुत बहुत आभार

कविता
मैं ही मैं
मैं ही ज्ञानी
मैं ही सबकुछ
मैं ही "अहम्"।

तू तुच्छ
तू मूरख
तू तेरी तूती
तू ही "खल"।

ये मेरा
वो भी मेरा
सब मेरा
मेरा ही "मरा"।

मैं बड़ा
सब में, मैं बड़ा
बड़ों का भी बड़ा
बड़ा ही "तेल में तला"।
भास्कर जोशी
9013843459

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